माहे रमज़ान में हमारा अमल कैसा हो मौलाना हस्सान क़ादरी


रमज़ान शरीफ एक बा अज़मत और मुबारक महीना है, इस माह के दिनों की रिफअत व बरकत आम दिनों से बढ़ कर होती है क्यूँकि इन दिनों में कसरत से ख़ैर व बरकत का नुज़ूल होता है और हर वक़्त रहमत इलाही की बारिशें होती रहती हैं, अगर कोई रोज़े को उसके तक़ाज़ों के साथ पूरा करता है तो उसका हर अमल इबादत लिखा जाता है

माहे रमज़ान में रोज़ा दार किस तरह वक़्त बसर करे और उसके मामूलात क्या हों आईये इसका जाएज़ा लें
नमाज़े फज्र में सबक़त और अज़ान सुनना नमाज़े फज्र में सबक़त (आगे रहना) और अज़ान सुनने की बड़ी फज़ीलतें और बरकतें हैं, रोज़ा दार को इसमें हरीस होना चाहिये और इन बरकतों को हासिल करना चाहिये
लेकिन अफसोस कि आज ज़्यादा तर लोग मस्जिद की तरफ सबक़त नहीं करते सिवाए उन बूढ़ों के जो अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन गिन रहे होते हैं
जुमा के दिन भी लोग मस्जिदों में उस वक़्त आते हैं जब ख़ुत्बा होने में कुछ वक़्त बाक़ी रह जाता है, फिर वह आकर मस्जिद के दरवाज़े पर ही बैठ जाते हैं ताकि जैसे ही इमाम ख़ुत्बा ख़त्म करे वह तेज़ी से मस्जिद में दाख़िल हों और नमाज़ से सलाम फेरते ही घर की तरफ रवाना हो जाएँ
जब्कि मस्जिद में पहले जाने और नमाज़ का इंतिज़ार करने के बहुत सारे फाएदे हैं
1- तकबीरे तहरीमा की हिफाज़त होती है
2- नमाज़ी अज़ान का जवाब देता है और उसके बाद दुआ करता है
3- नमाज़े बा जमाअत की हिफाज़त होती है
4- सफे अव्वल में जगह मिलती है जो बरकत की वजह है
5- सफ में दाहिनी जानिब खड़े होने का मौक़ा मिलता है जिसके सबब अल्लाह और उसके फिरिश्ते नमाज़ी पर सलाम भेजते हैं
6- जहरी नमाज़ों (फज्र, मग़रिब व इशा) में इमाम के पीछे आमीन कहने का मौक़ा नसीब होता है
7- अज़ान व अक़ामत के बीच नवाफिल अदा करने का वक़्त मिलता है जो महबूबे इलाही बनने का बेहतरीन ज़रिया है
8- नमाज़ के लिये जल्दी करने वाले को अल्लाह करीम बरोज़े क़ियामत अपने अर्श के साए में जगह अता फरमाएगा
9- नमाज़ी अज़ान व अक़ामत के दरमियान तिलावते क़ुरआन व दुआ कर सकता है
10- नमाज़ के लिये जल्दी जाने वाले को सुकून व इत्मिनान हासिल होता है
यह अमल हर नमाज़ में किये जा सकते हैं लेकिन इसे फज्र और मग़रिब के साथ इसलिये ख़ास किया गया है ताकि लोगों को फज्र में बेदार होने और शाम के वक़्त तिजारत से जल्द फारिग़ होने की तरग़ीब दिलाई जाए और कोई भी अमल किया जाए तो सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के लिये ही किया जाए
बादे फज्र से तुलूए आफताब तक नमाज़े फज्र से फारिग़ होकर सूरज निकलने तक इन मामूलात पर भी अमल किया ज? सकत है
1- सुब्ह के जो ज़िक्र हैं उनका विर्द करे, क्यूँकि ज़िक्र से इंसान का दिल रब्बे क़दीर की जानिब मोतवज्जोह रहता है
2- क़ुरआने करीम की तिलावत करे, और बेहतर यह है कि तर्जुमा वाला क़ुरआन (कन्ज़ुल ईमान) पढ़े कि इससे क़ुरआने करीम का तर्जुमा भी याद होगा और इल्म में इज़ाफा भी, साथ ही उसकी मोहब्बत क़ुरआने करीम से बढ़ती जाएगी
3- उसके बाद यह पाँच अनमोल मामूलात भी अपने ऊपर लाज़िम करने की कोशिस करें
1- मुशारता यानी बंदा अपने नफ्स पर यह शर्त रखे कि तुझे वही करना है जो मैं कहूँ, अगर मेरी बात मानो तो इसका बदला जन्नत है और ना मानो तो जहन्नम
2- मुराक़बा यानी नफ्स की निगहबानी करे ताकि वह अमल में रख़्ना ना डाल सके, और नफ्स की निगहबानी एक लम्हा के लिये भी ना छोड़े, अगर कभी मस्जिद से बाहर जाना हो और किसी बे पर्दा औरत पर नज़र पड़ जाए तो फौरन नफ्स से लड़ाई करे, निगाहें फेर ले और नफ्स से कहे कि क्या मैंने तेरे लिये जन्नत की शर्त नहीं लगाई है?
3- मुजाहिदा यानी नफ्स से जिहाद करे और उस पर पूरा क़ाबू रखे ताकि वह इबादत व रियाज़त से दूर ना रखे
4- मुहासबा यानी नफ्स का हिसाब करे और देखे कि उसका अमल सही है या नहीं
अल्लाह करीम इरशाद फरमाता है
क़ियामत के दिन हर जान हाज़िर होगी, अच्छा काम करमे वाली भी और बुरा काम करने वाली भी, और यह उम्मीद करेगी, काश! मुझमें और इसमें दूर का फास्ला होता, अल्लाह तुमहें अपने अज़ाब से डराता है और अल्लाह बंदों पर महरबान है (सूरए आले इमरान)
5- मुआक़बा यानी मुबाह अमल के ज़रिये नफ्स की सरकूबी करे और दस हज़ार बार इस्तिग़फार पढ़ कर उसका पीछा करे और अगर इबादत व रियाज़त के दरमियान कभी नींद या सुस्ती आए तो उसके लिये नफ्स का मुआख़िज़ा करे
ग़र्ज़ कि रोज़ा दार अपने रोज़े की उन तमाम बातों से हिफाज़त करे जिनसे शरीअत ने रोका है
कुछ लोग रोज़ा इसलिये रखते हैं कि उनहें रात को ज़्यादा खाना मिलेगा और वह पेट भर कर खाएँगे हालाँकि अल्लाह करीम ने रोज़े का हुक्म इसलिये दिया है ताकि बंदा मुत्तक़ी हो जाए और बंदा मुत्तक़ी उसी वक़्त होगा जब वह ख़ुद को भूका रखेगा
रोज़े में सुब्ह से शाम तक जो खाने पीने से रुकने का हुक्म दिया गया है वह इसी हिक्मत के तहत है कि बंदा अपने नफ्स को हराने का आदी बन जाए