जंगे उहद में 70 सहाबा ने जामे शहादत नोश फरमाया:हाफिज़ फ़ैसल जाफ़री





कानपुर:तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने जंगे उहद का जिक्र करते हुए कहा कि इस्लाम की तारीख़ में जिन अज़ीम जंगों को अहमियत दी गई है उन्ही में एक नाम जंगे उहद का भी है

यह इस्लाम की दूसरी और बड़ी अज़ीम जंग है जो हिजरत के तीसरे साल सातवीं या ग्यारहवीं शव्वाल को रौनुमा हुई

इस जंग में हुज़ूर अलैहिस्सलाम के 70 सहाबा शहीद हुए जिनमें आपके चचा हज़रते हमज़ा रजि अल्लाहु अन्हु भी शामिल हैं

इस जंग की वजह यह थी कि जंगे बद्र में सहाबा के हाथ मक्का के जो बड़े बड़े सरदार (जो सारी इंसानियत के दुश्मन थे) मारे गए तो उनके अज़ीज़ों के दिल में बदले की आग भड़कने लगी और सरकार अलैहिस्सलाम के साथ आपके सहाबा से बदला लेने की ग़र्ज़ से मक्का के सरदारों ने एक अज़ीम लश्कर तय्यार किया

हुज़ूर अलैहिस्सलाम अपने सहाबा के साथ मैदाने उहद में उनकी सरकूबी के लिये तशरीफ लाए जब्कि आपकी मर्ज़ी मदीना से बाहर लड़ने की नहीं थी लेकिन कुछ सहाबा के इसरार पर आपको मदीना छोड़ना पड़ा

आपने उहद पहाड़ के पीछे एक दर्रे पर (जहाँ से चुपके से दुश्मनों के आने का अंदेशा था) 50 तीर अंदाज़ों को यह हुक्म फरमा कर खड़ा किया कि जब तक मैं ना कहूँ यहाँ से मत हटना, और आप सहाबा के साथ जंग में शरीक हो गए

सहाबा ने अपनी दिलेरी का मुकम्मल सुबूत देते हुए दुश्मनों के दाँट खट्टे कर दिये और मैदाने उहद को उनके ख़ून से लाला ज़ार बना दिया, सरदाराने मक्का मैदान छोड़ कर भागे तो मुसलमान माले ग़नीमत हासिल करने में लग गए और दर्रे पर जिन सहाबा को खड़ा किया था वह भी आने लगे हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर ने मना किया कि सरकार अलैहिस्सलाम का हुक्म मत भूलो और यहीं खड़े रहो, लेकिन उन्होने एक ना सुनी और इसी मौक़े का फाएदा उठाते हुए हज़रते ख़ालिद इब्ने वलीद (जो उस वक़्त मुसलमान नहीं हुए थे) लशकरे इस्लाम पर पीछे से इतना ज़बरदस्त हमला किया कि सहाबा के पाँव उखड़ गए और इसी अफरा तफरी में कई मुसलमान मुसलमानों के हाथों ही शहीद हो गए

तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने कहा कि वहशी (जो बाद में ईमान लाए) बयान करते हैं कि उहद के दिन मैंने हमज़ा को शेर की तरह हमले करते देखा, वह दुश्मनों की सफें चीरते मेरी ही तरफ आ रहे हैं तो मैं एक पत्थर के पीछे छुप गया और जब वह मेरे क़रीब आए तो मैंने इतना ज़बरदस्त वार किया कि वह ज़ख़्मी होकर ज़मीन पर गिर गए और इसी हालत में इंतिक़ाल फरमा गए

हिंदा (यह भी बाद में ईमान लाईं) जो हज़रते हमज़ा से इसलिये जली बैठी थी कि जंगे बद्र में हज़रते हमज़ा के ही हाथों उसका बाप मारा गया था आपके सीने पर सवार हुई और कान नाक काट दिये, जब इतने पर भी जी नहीं भरा तो पेट चीर कर आपका कलेजा निकाला और कच्चा चबाया

इसी जंग में हुज़ूर अलैहिस्सलाम के सामने के 2 दनदाने मुबारक (दाँत मुबारक) शहीद हुए

जिन सहाबा की ख़ता (सहाबा की ख़ता ख़ताए इज्तिहादी कहलाती है जिस पर उनसे रब नाराज़ नहीं होता बल्कि उनकी ख़ताओं पर उनहें बेहरतीन बदला अता फरमाता है, लिहाज़ा हमें कोई हक़ नहीं पहुंचता कि हम सहाबा की ख़ताएँ जोड़ें या गिनाएँ) की बुनियाद पर इस जंग में मुसलमानों को शिकस्त हुई अल्लाह ने उन सहाबा को माफ फरमा दिया और क़ुरआने पाक की कई आयतें इसकी गवाह हैं

इस जंग में जिन सहाबा ने अपनी जानों को क़ुर्बान किया उन्हें हमारा दिल से सलाम हो और साथ ही हमें इस बात का सबक़ भी मिलता है कि हुज़ूर अलैहिस्सलाम के हुक्म के खिलाफ कोई काम करना हमें बर्बादी के रास्ते पर ले जाता है

लिहाज़ा दुनिया व आखिरत में सर को बुलंद करके इज़्ज़त व इकतिदार के साथ रहने का एक ही रास्ता है और वह है प्यारे आक़ा अलैहिस्सलाम की प्यारी शरीअत और अहकाम को मज़बूती से थामे रहना!